कितनी बारिशें आ गईं,
तेरे इंतज़ार में।
अब तो मेरी रूह भी परेशान है,
पूछ रही है यह मेरी परछाई से,
क्या हुआ उसका,
जिसका ज़िक्र किया करता था मुझसे,
जिसकी एक झलक पर डूब गया था तू उस समुंदर में,
जिसमें तू तैर भी नहीं पाया,
न की कोशिश।
अब तू बता,
क्या हुआ उन राज़ों का जो किया तूने छुपा,
उन बातों का जो किया नहीं तुमने बयां,
उन रातों का जो सोया नहीं तू उसकी राह में,
क्या हुआ?
चुप क्यों हो फिलहाल तुम,
क्यों बोल नहीं पा रहे,
बैठ क्यों गए तुम सोच में,
राह क्यों नहीं बता पा रहे।
बहुत दूर निकल आया हूँ,
तेरी यादों के सहारे में।
खोज रहा हूँ उसे हर जगह,
जिसके बिना अधूरा है मेरा जीना,
जिसके लिए बहा चुका हूँ आँसू,
उसी की तलाश में।
जिसके लिए बदल दी मैंने अपनी दुनिया,
जिसके लिए छोड़ दिया सब कुछ पीछे,
जिसके लिए जी रहा हूँ अब भी,
उसी की आस में।
अब तू सुन,
वो राज़ अब भी हैं छुपे,
उन बातों को अब भी है इंतज़ार,
उन रातों की यादें अब भी हैं बाकी,
उसी की राह में।
चुप इसलिए हूँ क्योंकि शब्द नहीं हैं,
बोल नहीं पा रहा क्योंकि जज्बात नहीं हैं,
बैठा हूँ सोच में क्योंकि रास्ता नहीं है,
राह नहीं बता पा रहा क्योंकि तू नहीं है।